मुहब्बत की शरुआत ही Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

मुहब्बत की शरुआत ही

मुहब्बत की शरुआत ही होती है मौत से,
न ही बच जाता अपना घर -सँसार।
न ही रहता अपना दिल-मिजाज,
बच जाता केवल आँसुओं के धार।।

Thursday, December 28, 2017
Topic(s) of this poem: love
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