हर कण-कण में जब तू ही केवल बसता है, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हर कण-कण में जब तू ही केवल बसता है,

हर कण-कण में जब तू ही केवल बसता है,
फिर दुनिया में कोई दुश्मन, कोई दोस्त क्यों बनता है;
यही रहस्य आज तक समझ नहीं पाया,
यही सोच-सोच अँदर -अँदर मन घुटता है।

Thursday, April 12, 2018
Topic(s) of this poem: love
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