मुहब्बत भले की, लेकिन बोला नहीं; Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

मुहब्बत भले की, लेकिन बोला नहीं;

मुहब्बत भले की, लेकिन बोला नहीं;
जिगर भले मिले, जुबां खोला नहीं।
दोनों ही रह गये, एक-दूसरे को देखते;
कभी भी प्यार को हमने तौला नहीं।

Friday, August 10, 2018
Topic(s) of this poem: love
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