हे रे सावन, इतना बता दो, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हे रे सावन, इतना बता दो,

हे रे सावन, इतना बता दो,
अब के बिछुड़े कब मिलेंगे।
इतना प्यार तुमने लुटाया,
तेरे बिना हम कैसे रहेंगे!

जगह -जगह खुशियाँ थी छाईं
सब के मन उमंग उमड़ आईं,
किसी की न रही कभी तनहाई,
अब हम कैसे प्यार सरसेंगे!

भूमि के हरितवर में भूमिका,
चित्र रची ले तूने अपनी तूलिका,
सव^त्र दिखा दी हरित पत्रिका,
अब हम कैसे प्रेममय गीत पढ़ेंगे!

तूने जोर-जबर्दस्ती कर उमंग नहवाया,
भूमि तालाब नदी सागर रस बरसाया,
आनँदमय उदधि का ज्वार सरसाया,
अब तेरे बिना हम कैसे रहेंगे!

जाता है तू तो आती रुलाई,
सबकी आँखें आज भर आईं,
आज रात भर नींद नहीं आईं,
"नवीन"तेेरे बिना कैसे उमंग झूलेंगे!

Tuesday, September 11, 2018
Topic(s) of this poem: love
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