अपनी ख्यालों में आज तुम्हें
शब्दों से सजा रहा हूँ,
रस, भाव, छंद, अलंकार के गहने पहना कर
तुम्हे काव्य से दूल्हन बना रहा हूँ,
भावनाओं को स्याही बना कर
तेरे हर रूप को निखार रहा हूँ,
साहित्य सी निर्मल हो तुम प्रिय
तुम्हें पन्नों पर सँवार रहा हूँ,
सितारों सी हो मन के गगन में तुम
दिल की जमीं पे तुम्हें पुकार रहा हूँ,
मेरे शब्दों में भी महके तेरे गज़रे की ख़ुश्बू
चर्चा आज उन फूलों की कर रहा हूँ,
जो तेरे जुल्फों से लिपटे रहते हैं उन फूलों को
आज ख़्यालों से पन्नों का स्पर्स दे रहा हूँ,
सावन ने सींचा है सूखे मन को आज अपनी बूंदों से
दिल की बंजर जमीं पर जैसे प्रेम उपजा रहा हूँ,
अपनी ख्यालों में आज तुम्हें
शब्दों से सजा रहा हूँ..
--आनंद प्रभात मिश्रा
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