|| तुम एक नारी हो || Poem by Anand Prabhat Mishra

|| तुम एक नारी हो ||

तुम्हें देखने का लोगों का
अलग अलग नज़रिया हो सकता है
लेकिन मैं लोगों से भी अलग तुम्हें देखता हूं
जैसे शांत जल को मैं देखता हूं
उसके भीतर मछलियों का इधर उधर आना जाना
जैसे तुम्हारे भीतर का अल्हड़पन हो
जैसे तुम्हारा चंचल मन हो
पानी के भीतर छोटे बड़े रंग बिरंगे पत्थर
जैसे तुम्हारे मन में छुपे अनेकों सपने हों
और जल जैसी स्वच्छता और पारदर्शिता
जैसे तुम्हारा सुंदर स्वभाव हो
उस स्थिर जल में हल्की सी हवाओं से उत्पन्न तरंगे
जैसे तुम्हारे चेहरे की मुस्कान हो
इतनी निर्मल पवित्र और सत्य
जैसे तुम प्रेम की पर्यायवाची हो
तुम्हारी विशेषताएं तुम्हारे गुण शब्दों के मोहताज नहीं
तुम इतनी सरल साधारण और परिपूर्ण हो
वर्णन करूं भी तो किन शब्दों में
हां बस इतना लिखूं तो बात पूरी हो
कि तुम एक नारी हो...

-आनन्द प्रभात मिश्रा

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