|| मैं यूँ हीं कहीं || Poem by Anand Prabhat Mishra

|| मैं यूँ हीं कहीं ||

मैं यूँ हीं कहीं, किसी जगह, अनजान राहों में
अपनी ही नजर से गिरी आंसूओं की बारिशों मे
तेरे खत को भिगोता रहा
शब्दों के दाग को धोता रहा
मिटा न सका उन यादों को दिल ओ दिमाग से
अपनी ही अश्कों में अरमानों की कश्ती डुबोता रहा
भीगता रहा फिर भी थे प्यासे मन के भाव
गैर ए मोहब्बत पा के भी भरे नहीं दिल के घाव
अब तो जख्म में भी तेरी मौजूदगी सी लगती है
दर्द में भी थोड़ी कमी सी लगती है...
खुद से सहला लेता हूं जख्मों को
तेरे आखिरी निशानी मान चूम लेता हूं जख्मों को
न जाने कितने मासूम ख्वाहिशें
एक उम्र गुजारना चाहती थी तुम्हारी बाहों में
मगर ऐसा हो न सका और अब ये हालात हैं
मैं यूँ हीं कहीं, किसी जगह, अनजान राहों में..


|| आनन्द प्रभात मिश्र ||

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