ज़ेहन में हर घड़ी Poem by Chitra Bisht

ज़ेहन में हर घड़ी

ज़ेहन में हर घड़ी
सवाल उठते हैं

क्यों अधूरे रहते हैं ख़्वाब
क्यों साथी छूटते हैं
करो जतन कितने भी
क्यों हर बार दिल टूटते हैं

ज़ेहन में हर घड़ी
यही सवाल उठते हैं

चित्रा बिष्ट

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