Himmat Aur Kosish/ हिम्मत और कोशिश
चलते, चलते,
राह में सीधे,
हम न जाने
कब यूं
गलत बनते गए।।
हम यूं न थे कभी
जानें कब डगमगा गए।
जिनसे कभी नफ़रत थी हमे
अब हम भी वही करे जा रहे।।
उन्ही गलतियों को
दोहराते चले गए हम
जिनसे कभी
खुजली होती थी हमे।।
ऐ मुसाफिर
घमंड न कर
जिसपे आज तू इतरा रहा
कल यही तुझपर हसंगे।।
मान जा ऐ तितली
कभी न कभी तो तू
बैठेगी ही मुझपर भी
फूल के मधु की खोज में।।
ये समय का चक्कर है
कल जो दिखे सुहावना
आज सायद धूप की लौ से
जुसलस कर फीका हो गाया होगा।।
सब छनभंगुर है भैया
न साथ, न बात
जो स्थाई है वो है
आपनी हिम्मत और कोशिश।।
AD२८०२२०२१
Sunday, February 28, 2021
Topic(s) of this poem: determination,trying,change,temporary,positiveness