Yashovardhan Kulkarni
वक्त काटने आया भैय्या - wakt katne aya bhaiyya - Poem by Yashovardhan Kulkarni
वक्त काटने आया भैय्या,
खांच-खरोच छाने मेरा साया
पहली रेल पकडले भैय्या,
भूत-पिशाच से छुडाले बैय्यां
दिल की डगर संभाल ले भैय्या,
जी जां लगाके भाग ले भैय्या
वक्त काटने आया भैय्या
आज में बारी बारी
बारी बारी
मेरे वफ़ा की याद दिलाऊँ
इस वक्त को समझाउँ
याद दिलाऊँ
जो न माने जो ना माने
याद दिलाऊँ
ना समझू ना समझू खुदको किसमें पाऊं
किसमे पाऊं
किसमें पाऊं
फिर साले ना ढूंढे कभी
ना ढूंढे कभी
मेरी जाँ को
मेरी जाँ को
इस वक्त के कत्ले-आम में
वक्त के कत्ले-आम में
जो ना चाहे, जो ना पेह्चाने
मेरे गुलिस्तां को
जो ना माने,
मेरे सुने जी की पाकिझा
ये अंगार बुझ जाए,
बुझ जाए
ऐसे आलम में
वो आई देने मेरा साथ
वो है मेरे लब्जों की दूसरी बात
फिर आई देने साथ
और में फिर भुलादूं मेरे दिल की गुहार
फिर जाऊं उस बेरहम के पास
दूसरी बात चली जाए, बस बिना कुछ कहे चली जाए
और में जाऊं उस बेरहम के पास
बेरहम के पास
बेरहम
वक्त काटने आया भैय्या,
खांच-खरोच छाने मेरा साया
पहली रेल पकडले भैय्या,
भूत-पिशाच से छुडाले बैय्यां
दिल की डगर संभाल ले भैय्या,
जी जां लगाके भाग ले भैय्या
वक्त काटने आया भैय्या
Topic(s) of this poem: time
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