दुनिया के वास्ते सूअर गोश्त क़साई
औजार बनाने वाला लुहार, गेहूं ढोने वाला काश्तकार,
रेलमार्ग संचालक, राष्ट्र का माल ढोने वाला मज़दूर,
जोशीला, प्रचण्ड, झगड़ालू,
चौड़े कंधों का शहर:
वो कहते हैं: तुम दुष्ट हो और मैं उन पर यकीन कर लेता हूं,
क्योंकि मैंने देखा है गैस लैंपों के नीचे
तुम्हारी सजी-धजी कामुक औरतों को
नादान लड़कों को फुसलाते ।
और वो कहते हैं मुझे कि तुम घाघ हो
और मैं कहता हूं: हाँ, यह सच है
क्योंक्ति मैंने देखा है हत्यारे को हत्या करते हुए
और उसे छूटते हुए फिर से हत्या करने के लिए।
और वो कहते हैं मुझे कि तुम ज़ालिम हो
और मैं भी कहता हूँ: हाँ मैंने देखें हैं
स्त्रियों और बच्चों के चेहरे पर
ख़ौफ़नाक भुखमरी के निशान।
और ऐसा जवाब देकर
मैं एक बार फिर मुड़ता हूँ उन लोगों की तरफ
जो मेरे शहर की उड़ाते हैं खिल्ली
और मैं भी उन्हीं के अंदाज़ में मज़ाक उड़ाते हुए कहता हूँ:
आओ दिखाओ मुझे भी कोई और ऐसा शहर
जो सिर उठाकर गाता हो गर्व से
अपने जीवंत, बेलगाम, मजबूत और शातिर होने का नग्मा।
मुख्तलिफ़ काम के बोझ में दबा
दिनभर भागदौड़ करते हुए
फँस जाता है और भी भयानक मुसीबतों में
फिर भी खड़ा है सशक्त खिलाड़ी-सा
छोटे सुस्त-धीमे शहरों के सामने।
भयानक कुत्ते की तरह लपलपाती जीभ
वहशी जानवर सा खड़ा है
बयाबान के खिलाफ़ संघर्ष करने के लिए
खुले सिर
बेलचा चलाते हुए
तोड़फोड करते हुए
ख़ाका बनाते हुए
निर्माण, विध्वंस, पुननिर्माण
धुंए से घिरा, धूल से लथपथ चेहरा
बदनसीबी के भयानक बोझ में दबा
खिलखिलाकर हँसता है
जैसे कोई युवा हँसता हो अपनी बत्तीसी दिखाते हुए
वो भी हँसता है ऐसी हँसी
जैसे कोई अनजान योद्धा
जिसने कभी कोई युद्ध न हारा हो
गुमान करता है और हँसता है
कि उसकी बाजु में अभी भी जान है
और उसके सीने में धड़कता है दिल
अपने लोगों के लिए।
खिलखिलाकर हँसता
ठहाका लगाकर हँसता है बेधड़क, ककर्श युवा हँसी,
नंग-धड़ंग, पसीने से तर-बदर, गर्व करते हुए
कि वो सूअर गोश्त क़साई, औजार बनाने वाला लुहार, गेहूं ढोने वाला काश्तकार,
रेलमार्ग का संचालक और राष्ट्रीय माल ढुलाई मज़दूर है।
अनुवाद: दीपक वोहरा
जनवादी लेखक संघ
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