हमने देखा था एक सपना,
देखा था एक सपना स्वतंत्र मज़बूत भारत का,
हमने सोचा था कभी,
सोचा था कभी हम फिर सोने की चिड़िया कहलायेगे,
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Kaisi Ye Azadi
हमने देखा था एक सपना,
देखा था एक सपना स्वतंत्र मज़बूत भारत का,
हमने सोचा था कभी,
सोचा था कभी हम फिर सोने की चिड़िया कहलायेगे,
हमने चाहा था कभी,
चाहा था कभी हम भी जाति धर्म से उठकर एक जुट हो जायेगे,
मगर ये हो न सका,
हो न सका क्यूकि:
देखा हुआ सपना हो न सका साकार,
टूट गया वो हो गया चकनाचूर, हम हो गए फिर गुलाम
हो गए गुलाम कुछ चंद चुने हुए सफेदपोशो के,
जो सोचा था हमने वो हम कर न सके,
कर न सके क्यूकि हम थे मजबूर,
थे मजबूर क्यूकि निगल गए कुछ लोग हमारी अपार संपदा को ,
जो चाहा था हमने, वो हम चाहते हुए भी कर न सके,
कर न सके क्यूकि कुछ चंद वोटो के लिए खेला गया जाति पात का खेल,
इस खेल का है ये अंजाम की हम आज भी कर रहे जाति धर्म के नाम पे कर रहे कत्ले आम,
मैं फिर देखना चाहूगा वो सपने, जो देखे थे हमने कभी,
मैं सोचना चाहूगा फिर वही, जो हमने सोचा था कभी,
एक दिन वो फिर आएगा जब हम होगे स्वतंत्र इन बेड़ियों से
पायेगे एक स्वस्थ समाज जहाँ न होगा कोई डर
स्त्रियाँ जब होगी स्वतंत्र अपने लिबाज़ से
घूमेगे सब अपने हिसाब से,
जय हिंद