बहती हुई नदी में देखा मैने एक नाव
थोड़ा टूटा, थोड़ा फूटा, शायद खुद से रूठा
चलता चला जा रहा था
...
She is my friend
I'm taking her somewhere today
Thinking about
Cafe Coffee Day
...
Walking in the streets, I saw a boy
Stealing bread and butter
From a small bakery
Situated near the gutter
...
ज़िन्दगी
बहती हुई नदी में देखा मैने एक नाव
थोड़ा टूटा, थोड़ा फूटा, शायद खुद से रूठा
चलता चला जा रहा था
देखकर उसे मुझे हुआ थोड़ा अचंभा
की आखिर उसे चला कौन रहा था
आगे जाकर देखने की कोशिश की
पर देख न पाया
जैसे वो खुदको मुझसे छुपा रहा था
उसके साथ चलते-चलते
मैं पहुँच गया वहाँ
बड़ी नुकीली चट्टानें
होती थी जहाँ
चट्टानों को देख
मैं सोचने लगा ऐसे
आखवखिर अब ये
आगे जाएगा कैसे
मेरे सोचने तक
वह पहुँच गया बहुत दूर
थोड़ी देर में कुछ आवाज़ आई
पता चला वह नाव
हो गई थी चूर
बहुत ढूँढा मैंने उसके नाविक को
पर ढूँढ न पाया उसे
बिना जाने पीछा कर रहा था जिसे
नाव की लकड़ियों के ढेर में
देखा मैंने कुछ ऐसा
कुछ शब्द लिखा हुआ
जाना पहचाना जैसा
'ज़िन्दगी' थी वो शब्द जाना-पहचाना
जिसका मकसद था यह बतलाना
की ज़रूरी नहीं की ज़िन्दगी हमेशा चलती रहे
एक दिन हमें उसे भी है छोड़ के जाना ।।
by Satyam Kr. Tiwari