'तुजे जीना सीखा रही थी' Poem by Sanjay Singh Saharan

'तुजे जीना सीखा रही थी'

Rating: 5.0

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मैंने कल एक झलक जिंदगी को देखा,
वो मेरी राह में गुनगुना रही थी...

मैं ढूंढ़ रहा था उसे इधर उधर,
वो ऑंख मिचोली कर मुस्कुरा रही थी...

एक अरसे के बाद आया मुझे करार,
वो थपकी दे मुझे सुला रही थी...

हम दोनों क्यों ख़फा हैं एक दुसरे से,
मैं उसे और वो मुझे बता रही थी...

मैंने पुछा तूने मुझे इतना दर्द क्यों दिया?
उसने कहाँ मैं जिंदगी हू...

'तुजे जीना सीखा रही थी'

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COMMENTS OF THE POEM
Jagdish Singh Ramana 29 December 2020

Sabaq amiz nazm. Zindagi ki bate'ñ chalti rahe'ñ/ bandagi ki bate'ñ chalti rahe'ñ|

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Dalman, Sardarshahar
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