जीवन (एक पथ) Poem by Vivek saswat Shukla

जीवन (एक पथ)

संघर्षों के बड़े शिखर हैं,
पथ पर मेरे अड़े खड़े हैं, ,
चलना मुश्किल अब राहों पर,
पैरों में कांटे गड़े पड़े हैं।
कर्तव्य पथ से जो मुंह फेर,
वे कायर कहलाते हैं, ,
मेहंदी के पत्ते पिसते जाते,
तब लाली ले आते हैं।।

सहती वार पाषाण शिला,
तब प्रतिमा में ढलती है, ,
पर्वत छोर निकलती नदियां,
तब मस्तक पर चढ़ती हैं।
सोने सा यदि बनना तुमको,
जलती अग्नि में तपना होगा, ,
हीरे की चमक चाहते हो यदि,
धारों पर धार को सहना होगा।।

सूरज ढलता चला गया अब,
अंधेरों का साया है, ,
गया कभी था, जो प्रकाश,
लौट नहीं वह आया है।
अपनी चिंगारी के दम पर ही,
अपना इतिहास बनाना होगा, ,
रणभूमि से वापस,
एक विजय पताका लाना होगा।।

एक लिंग को शीश नवा,
मन भीतर सुंदर दीप जला, ,
हृदय को अपने झिंझोड़ जरा,
भुज डंडों को मरोड़ जरा।
निखर निडर नयनों के भीतर,
कर दे एक चिंगारी स्थिर, ,
ही जीवन के भिक्षुक राजा,
रणभूमि में फिर से छाजा।।

~विवेक शाश्वत

जीवन (एक पथ)
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