Ajay Srivastava Poems

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241.
रसोई

राह यही सै जाती है सहमत भाव के मान की
यही बडाती है सहमत भाव के मान और सम्मान को|

सोन्द्रय के प्रक्रति रूप को निखार यही सै मिलता है|
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242.
मजा आता है

उनको बिगडने मे
हमे बनाने मे

उनको भडकाने मे
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243.
में हार गयी

शोलो और फौलाद की तरह
बना लो अपने अस्तित्व को
बहुत सह लिया अब और नहीं सहेंगे
अब तो दिल से कर्म करने की ठान ली है।
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244.
कर्म-आवशयकता

प्रयास करना तुम्हारा कर्म है|
कर्न को फलीभूत करना तुम्हारा धर्म है|
धर्न का सदुपयोग तुम्हारा दायित्व है|
दायित्व का पालन करना ही वांछित फल है|
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245.
लोकतंत्र है

इंसानियत का प्रदर्शन करंगे|

कोर्ध पर नियंत्रण रखेंगे|
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246.
प्रण कर ले

प्रण कर लिया है|
मशाल को प्रजवलित करना है|
हर अचेतन व्यकित्तव को चेतन करना है|
देश के वीर सपूतो के बलिदानो की
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247.
पूछो - दर्द और समाधान

कड़कती ठंड या फिर कड़कती धुप में

सीमाओ की रक्षा करने वालो जवानो से पूछो|
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248.
हम-तुम

तुम डरपोक हो|
हम साहसी है|
तुम असभ्य और असंस्कृत हो|
हम सभ्य और संस्कृत है|
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249.
सब में ही तुम

चुन ले राह तू अपनी|

अपने इरादो को कर तू बुलंद|
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250.
कोशिश तो

तिनके के समान कर्म
पल भर मे दर्पण तैयार|

व्यंगात्मक ही सही
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