कर्म-आवशयकता Poem by Ajay Srivastava

कर्म-आवशयकता

Rating: 4.0

प्रयास करना तुम्हारा कर्म है|
कर्न को फलीभूत करना तुम्हारा धर्म है|
धर्न का सदुपयोग तुम्हारा दायित्व है|
दायित्व का पालन करना ही वांछित फल है|
फल का समान वितरण करना न्याय है|
न्याय करने से ही उत्तपन्न सन्तोष है|
सन्तोष से ही स्थिरता है|
स्थिरता की पहचान शंति है|
शंति आज की आवशयकता है|
आवशयकता अविष्कार की जननी है|

कर्म-आवशयकता
Wednesday, December 16, 2015
Topic(s) of this poem: action
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