तनहाई के समन्दर में डूब सा गया हूं मैं
ना जाने खुद को कहां खो बैठा हूं मैं
इस क़दर मार पड़ेगी तेरी ऐ ज़ालिम सोचा ना था
खुदी को तलाश्ता रहा और तुझसे जुदा हो गया हूं मैं
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तनहाई (Tanhai)
तनहाई के समन्दर में डूब सा गया हूं मैं
ना जाने खुद को कहां खो बैठा हूं मैं
इस क़दर मार पड़ेगी तेरी ऐ ज़ालिम सोचा ना था
खुदी को तलाश्ता रहा और तुझसे जुदा हो गया हूं मैं
फंस गया हूं इस चार-दीवारी मे, अब कुछ कर नही सकता
जकड़ लिया इन ज़ंजीरों ने, अब तो मर भी नही सकता
टूट गया हूं अंदर से, बस एक पुतला ही बाकी है
निकल आया हूं दूर तुझसे इतना, अब वापस मुड़ भी नही सकता
मत आज़मा मुझे, मुझमे वो बात नही
लड़ सकुं तुझसे, मेरी वो औकात नही
माना मैं नादान हूं, पर तू तो खुद कादिर है
इस क़दर फ़ासले ना बढ़ा, पता तेरा मुझे मालूम नही
कर सकता है तो कर दे जंग का एलान, दिखा मुझे कितना ताकतवर है तू
बीच खड़ा हूं मैदान मे, मरने का अब कोई डर नही
आज भी याद है मुझे वो हर एक पल जिन्हें मैं याद करना नही चाहता
भूल सकता तो भूल जाता पर भूलना भी नही चाहता
इस कदर ताज़ा है उन लम्हों के ज़ख्म के हर एक लम्हा चीर के गुजरता है
कितनी भी कोशिश कर लूँ बच नही सकता वज़ूद मेरा यूँही भिखरता है
तू जानता है इस मर्ज़ की दवा क्या है, तू जानता है क्यूं मैं दर-बदर हूँ
जब ये सारा आलम ही तेरा है, तो फिर क्यूं तू मुझे मोहताज करता है
सुना था मैने किस्से कहानियों मे, एक मसीहा आता है
हद्द गुज़र जाये जब ज़ुल्मो की, वो इंसाफ करता है
जब तपिश बढ़ती दिलों मे, आग वो ही बुझाता है
चाहे कितने भी घहरे हों ज़ख्म, वो मरहम लगता है
ना जाने मेरी इस कहानी मे तू कब आयेगा
भड़क रहे अंगारे दहक रही रूह को कब बचायेगा
एक समा गुज़र चुका तेरी राह तकते तकते
मेरी डूबती हुई कश्ती को कब पार लगायेगा
टूट चुका है मेरे ख्वाबों का आशियाना, कहीं कुछ नज़र नही आता
सूख गया है मेरे अरमानों का पौधा, अब कुछ समझ नही आता
पागल सा जानते हैं लोग मुझे, दरकिनार हर कोई करता है
कभी इस दर कभी उस दर हर दरों से दूर, हर कोई मुझसे डरता है
इस भयानक बवण्डर से दुनिया की ज़लालत से तू कब मुझे बचायेगा
ना जाने मेरी इस कहानी मे तू कब आयेगा
पर फिर एक ख्याल ज़हन मे आता है के तू हर चीज़ से वाक़िफ है
तुझे इल्म है अपने बन्दों का तू हर नज़र मे हाज़िर है
मैं जो भी हूँ ये सब तेरी ही इनायत है
रहमतें तो तेरी तमाम हैं मेरी झोली ही काफिर है
बस फर्क है तो नज़रिया बदलने भर का है
तू कल भी यहीं था तू आज भी हाज़िर है
इश्क़ हक़ीकी की समझ नहीं मुझे, मेरा ज़मीर ही कुछ इस कदर नादिर है
गलतियों का पुतला हूँ मैं, इल्ज़ाम सारे तुझ पर हैं
गर तू ना बख़्शता मुझे फिर ये क़फन ही मेरी चादर है
पर एक बात ज़हन मे रखना, तुझे पाने के काबिल हूं मैं मरने के लायक नही
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