Dinesh Rahangdale

Dinesh Rahangdale Poems

माँ शब्द का भंडार है माँ शब्द महान है
व्याख्यान तो नहीं कर सकते हम पर ये सारा जहान है हम माटी की थी पुतलियाँ,
कोख में अपनी पकाया है प्यार से पाला बढ़ा किया है कर्ज बहूत बकाया है
और क्या कहूँ मैं अब माँ पर नहीं लिख सकता मैं,
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The Best Poem Of Dinesh Rahangdale

माँ

माँ शब्द का भंडार है माँ शब्द महान है
व्याख्यान तो नहीं कर सकते हम पर ये सारा जहान है हम माटी की थी पुतलियाँ,
कोख में अपनी पकाया है प्यार से पाला बढ़ा किया है कर्ज बहूत बकाया है
और क्या कहूँ मैं अब माँ पर नहीं लिख सकता मैं,

इस जहान में सिर्फ एक ही मूरत दिखती जिसमें भगवान की सूरत
वहीं हमें है जानती दिल की बातें पहचानती
वह अनोखी है बहुत,
अनोखी उनकी बातें शिकायत नहीं कर सकता मैं, ये है माँ हमारी बातें
बहुत है कहने को पर शायद नहीं लिख सकता मैं
और क्या कहूँ मैं, माँ पर नहीं लिख सकता मैं

बचपन मेरा उंगली थाम मेरी चलना उन्होंने सिखाया
कितना कुछ सहा उसने, हरकत मेरी और अठखेलियाँ
प्यार बहुत करती है वो आज भी उतना ही मुझसे
वक्त अलग था वो भी कैसा
नहीं कह सकता मैं
और क्या कहूँ मैं अब,
माँ पर नहीं लिख सकता मैं

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