माँ
माँ शब्द का भंडार है माँ शब्द महान है
व्याख्यान तो नहीं कर सकते हम पर ये सारा जहान है हम माटी की थी पुतलियाँ,
कोख में अपनी पकाया है प्यार से पाला बढ़ा किया है कर्ज बहूत बकाया है
और क्या कहूँ मैं अब माँ पर नहीं लिख सकता मैं,
इस जहान में सिर्फ एक ही मूरत दिखती जिसमें भगवान की सूरत
वहीं हमें है जानती दिल की बातें पहचानती
वह अनोखी है बहुत,
अनोखी उनकी बातें शिकायत नहीं कर सकता मैं, ये है माँ हमारी बातें
बहुत है कहने को पर शायद नहीं लिख सकता मैं
और क्या कहूँ मैं, माँ पर नहीं लिख सकता मैं
बचपन मेरा उंगली थाम मेरी चलना उन्होंने सिखाया
कितना कुछ सहा उसने, हरकत मेरी और अठखेलियाँ
प्यार बहुत करती है वो आज भी उतना ही मुझसे
वक्त अलग था वो भी कैसा
नहीं कह सकता मैं
और क्या कहूँ मैं अब,
माँ पर नहीं लिख सकता मैं