सोच लिया अब, अब हम भरेंगे तुम्हें अँकवार,
मिलेंगे तुमसे, तुमसे मिलेंगे, इसी जन्म एकबार,
सागर कितना भी गहरा, जहाज उसीमें चलता,
मल्लाह पतवार डालकर, उसी को पार करता है
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लोग अपने गम में क्यों रोते है,
जब दूसरे के रोने में हँसते है ।
गैर का दुख-दर्द न लगता अपना,
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