Dr. Navin Kumar Upadhyay Poems

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सोच लिया अब, अब हम भरेंगे तुम्हें अँकवार,
मिलेंगे तुमसे, तुमसे मिलेंगे, इसी जन्म एकबार,
सागर कितना भी गहरा, जहाज उसीमें चलता,
मल्लाह पतवार डालकर, उसी को पार करता है
...

लोग अपने गम में क्यों रोते है,
जब दूसरे के रोने में हँसते है ।

गैर का दुख-दर्द न लगता अपना,
...

199.
हम हारना ही चाहते

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