GULSHAN SAHU

GULSHAN SAHU Poems

1.

अनायास ही लोग पूछते हैं,

क्या दिन के चार शब्द ही बोलता है,
...

विकास हो न सकेगा
पैसों से मौज करते रह जाएंगे,
स्वच्छता अभियान करा लो जितने
खुले में शौच करते रह जाएंगे,
...

साठ बरस बीत गए, क्रांति कि सिर्फ़ धूल उड़ी

विकास की राह पर चलना था जिनको,
...

गर बन पड़ता मुझसे,

तो तेरी भी खै़र कर लेता,
...

मैं वो सुलगती आग हूँ,

आवाम की रगों मे जो बहता है,
...

मैं वो सुलगती आग हूँ,

आवाम की रगों मे जो बहता है,
...

कभी ऐसा लगता है अटूट हूँ किसी परिंदे की तरह उड़ु,

और कभी कभी डर की राख आँखों में चुभ जाती है,
...

The Best Poem Of GULSHAN SAHU

Poet

अनायास ही लोग पूछते हैं,

क्या दिन के चार शब्द ही बोलता है,

उसका काम जवाब देना नहीं,

वो तो अंतरमन की पीड़ा को टटोलता है।

महफिल तो अमीरों के मौज हैं,

वो बस सूने कोनों में दिखता है,

कलम मे उसके स्याही हो,

वो कागज़ की कीमत लिखता है।।



मन में जो बातें चुभती हैं,

पन्नें ही उसका निशाना है,

ये बुढ़ी धरती माँ है,

इसका दुखड़ा उसका फसाना है।

पर इसके शब्दों का मोल कहाँ,

ये तो बस कौड़ियों में बिकता है,

कलम मे उसके स्याही हो,

वो कागज़ की कीमत लिखता है।।



बातें उसकी समय से परे हैं,

समय का दर्द कौन सहलाना चाहेगा,

किसमे इतनी हिम्मत जो,

भरे बाजा़र पागल कहलाना चाहेगा।

अकेला ही छोड़ दो उसे,

अकेले ही दुनियादारी सिखता है,

कलम मे उसके स्याही हो,

वो कागज़ की कीमत लिखता है।।

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