Hanzala Bin Aman

Hanzala Bin Aman Poems

गुज़री हैं सदियाँ
कि इस बेहिस दिल को क़रार न आया
अब तक यह बेवफ़ा दिल
उसी बेवफ़ा के लिए धड़कता हो जैसे
...

You fight for everything with each other
Countless innocent lives you smother,
You fight for power, wealth and the God
You kill toddlers who hardly plod
...

The Best Poem Of Hanzala Bin Aman

मुंतज़र

गुज़री हैं सदियाँ
कि इस बेहिस दिल को क़रार न आया
अब तक यह बेवफ़ा दिल
उसी बेवफ़ा के लिए धड़कता हो जैसे
कि इंतज़ार हो इसे
किसी अनीस का, किसी रफ़ीक़ का, किसी शफ़ीक़ का
जैसे कि बैठा हो यह मुंतज़र, किसी ज़ुल्मत में
कि ख़ल्वत से निकल कर किसी जलवत में जा बैठे
इस अँधेरी तन्हाई से निकल कर किसी का फिर से शैदाई हो जाये
इस उम्मीद में
कि मिल जाये
कहीं तो क़रार
कहीं तो मिले इसे मस्कन, एक ऐसी पनाह
जो दे सके इसे
कम से कम पल भर का सुकून



या कि फिर जा बसे किसी ऐसी जगह
जहाँ याद न आये वह रुख-ए-निगार
न याद आये शीरीनी-ए-लब-ए-यार
न याद ए ख़म-ए-गेसू
और चश्म -ए- साक़ी -ए -हुब्ब-व-जफ़ा
जहाँ चले कोई ऐसी सबा
जो ले उड़े इसका ग़म इसका आलम
कर दे इसे निजात -ए -सितम

या फिर, मिले कोई ऐसा मैखाना
जहाँ पी सके, जाम-ए-मर्ग
और पहुँच जाये
एक ऐसी तवायफ की गोद में
जिसने हर किसी से मुहब्बत की
और किसी से वफ़ा न किया
वहां हो जाये ख़ाक
वही ख़ाक जिस से इसकी तख़लीक़ हुई है
फिर से जी उठने की उम्मीद के साथ

लेकिन इसे खौफ है
खौफ कि कहीं मलक
इसे काफ़िर न कह दें
तीन आसान से सवालात पे
और मुब्तला हो जाये
एक अज़ाब से निकल कर
दूसरे अज़ाब में

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