एक बात कहु मै, माँ
मुझे तुम्हारी याद नहीं आती,
हँसता हुँ , मैं
रोता हुँ , मैं
...
माँ और मैं
एक बात कहु मै, माँ
मुझे तुम्हारी याद नहीं आती,
हँसता हुँ , मैं
रोता हुँ , मैं
ये भी पता है मुझे
कौन होता हुँ, मैं
पर तेरी याद नहीं आती,
मुझे तुम्हारी याद नहीं आती.
जल जाता है हाथ क़भी कभी
रोटी सेंकते,
लग जाती कोई बात कभी कभी
मंजर देखते,
कोई बेवजह दुःख पहुंचता
कोई अक्सर ही है हँसाता,
कोई तुम्हारे इतना है प्यार करता
कोई तुम्हारी तरह है बात करता,
कभी तो कोई बेटा कह जाता
सर पे कोइ हाथ है रख जाता,
तब भी तुम्हारी याद नही आती
हाँ माँ, नही तुम याद आती,
असीम दर्द होता सिर में
तपता शरीर जब ज्वर में,
कभी ठेस लग जाती पांव में
दुःख के अनदेखी छांव में,
चीख निकल जाती है तेरे नाम की
जैसे अंतिम साँस हो धुनलके शाम की,
पर तुम्हारी याद नहीं आती
तुम्हारी याद नहीं आती ,
कुछ और बात कहूं मैं, माँ
कड़वी बातें करता मैं तुमसे
इसका न एहसास दिलाती
औरो से जब की वैसी बातें
वो बातें फिर मुझे सताती,
बचपन में गिरता था बार बार
उठाती थी तू हर बार,
आज भी गिरता हु मै माँ
ऑंखें नम सी हो जाती है
कोई हाथ न आता उठाने को अब माँ
हृदय जम सी जाती है,
बहुत रोया था हर बार
तुझसे थप्पड़ खा कर,
ये मत समझना चोट लगी थी
बस तू रोती थी मुझे मारकर,
पर अब तुम्हारी याद नहीं आती
हां तुम्हारी याद नहीं आती,
एक और भी बात कहु मैं माँ
मेरे होंठ काँपने लगे
मैं कह नहीं पा रहा
जैसे दिल रो रहा है
मै सह नहीं पा रहा,
मेरे आँखों ने मेरे साथ
छोड़ दिया हैजैसे
मैं नज़रे नहीं मिला पा रहा,
मेरा शरीर शिथिल हो रहा है
मै सांस नहीं ले पा रहा,
पर जरूरत है की ये मै कहु्ँ
अब जरूरत है इसे भी सहुँ,
माँ मैं तब तब तुम्हारी
अनन्त यादें चुनता हुँ,
जब जब किसी के मुंह से
'माँ' शब्द सुनता हुँ,
हाँ माँ जब जब मैं
'माँ' शब्द सुनता हुँ! ।।।