घर
तेरी इस करवट ने ए-कुदरत,
मेरा आशिंया उजाड़ा हैं,
पर समझ ना मुझे कमज़ोर तु,
देख कैसे मैने खुद को सम्भाला हैं,
अपने हर आसुं को मैं मोती बनाउंगा,
अगर चुनोती हैं यह खुद को साबित करने की,
तो साबित खुद को करके दिखाउगां।
तु जब जब बिजली का कहर दिखाएगा,
तु जब जब बारिश की बुंदों से डराएगा,
मैं भीग के बारिश के उस पानी में,
तेरी हर कोशिश पर ताली बजांउगा।
सोचेगा फिर तु अपने हर फैसले पर,
तु खुद मेरी पीठ थप थपाएगा,
वादा हैं मेरा तुझसे,
एक एक पत्थ़र मैं चुनके लाउंगा।
गर्व से ऊंचा होगा मेरा सर,
और होगी हँसी चह़रे पर,
जब यँही अपना घर, मैं फिर से बनांउगा।।