vijay gupta Poems

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101.
आज कुछ खास है

आज कुछ खास है

आज तो फिजाऐ बदली-बदली हैं,
अलमस्त सुनहली धूप धरती पे है,
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102.
वृक्ष

"वृक्ष"

सूरज तुम्हें ऊर्जा दे रहा है,
वायु प्राण दे रही,
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103.
डाली पेड़ की

"डाली पेड़ की"
सामने खड़े पेड़ की
एक डाली क्यों सूखी है?
उसे कोई संताप है
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104.
डॉगी

"डॉगी"
आज एक डॉगी
सामने उदास बैठा है,
ना कुछ खाता है,
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105.
"बदरंग मानवता"

"बदरंग मानवता"

पूरब से निकलकर पश्चिम में छिप जाना,
शगल तुम्हारा हो गया है।
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106.
पागलपन

"पागलपन"

पागलपन की भी कोई हद होती है,
ठीक है कि हम उसे पाना चाहते हैं,
...

107.
अत्याचार

"अत्याचार"

हमें मनोरंजन का अधिकार तो है,
पर क्रूरता का हक नहीं,
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108.
असहिण्णुता

"असहिण्णुता"
समाज में यह क्या हो गया है,
मामूली-मामूली बातों पर झगड़ना,
प्यार व समरस्ता खत्म हो गई,
...

109.
मजबूरी

"मजबूरी"

रात के वक्त बच्चा जिद करता है,
हमें जिद पूरी न कर पाने का मलाल,
...

110.
अहसास

"अहसास"
डाल पर बैठी अकेली चिड़िया को देखा,
तो जिंदगी का फलसफा समझ आने लगा,
एक दौर ऐसा भी आता है,
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