काश गर्भाशय मे ही बोलने की आज़ादी होती, तब बेटी ज़ोर-ज़ोर से ये कहती की उसे जीना है| उसके माँ-बाप शायद तब भी उसे अनदेखा कर देते| हमारे देश की ये विडम्बना है की जिस देश मे नारी की शक्ति रूप मे उपासना की जाती है, आज उसी देश मे नारी को विलुप्ति की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया गया है|
इतिहास पर अगर एक नज़र दौड़ाएँ तो ये नज़र आता है की शुरुवात से ही हालत ऐसे नहीं थे| मानव सभ्यता के आरंभ मे एक महिला का दर्जा पुरुष के मुक़ाबले ऊंचा था| मानव उपासना भी स्त्री की करता था| समय के साथ भगवान का पुरुष-करण किया गया और पित्र-सत्ता को बढ़ावा दिया गया| यही वाकया हर धर्मा, हर समाज मे हुआ| स्त्री का दर्जा धीरे-धीरे कम होने लगा और 18वीं सदी तक ये सबसे निचले स्तर पर जा चुका था| मानव ने अपने आप को रूढ़िवादी घिसी-पिटी जंजीरों में बांध लिया, जहां तर्क करने की इच्छा को खतम कर दिया गया| भारतिये समाज मे धर्म गोस्ठी का बहुत महत्व था| यह एक चर्चा करने का विशिष्ट आयोजन था| पूरे देश के हर कोने-कोने से हर क्षेत्र के जानकार इसमे सम्मिलित होते थे और हर एक विषय, चाहे वो कितना भी संवेदनशील हो, उस पर चर्चा करते थे| यह एक आगे बढ्ने वाले समाज का सूचक है| धीरे-धीरे इन आयोजन की कमी हो गयी, और हमारी विचारधारा संकीर्ण होती गयी| नियम हमारे समाज को दिशा देते है, जिसका हमे पालन करना चाहिए – लेकिन इसकी बंदिश मे बांधना सही नहीं है| समय के साथ-साथ समाज बदलता है और इस समाज को नियम भी बदलते रहने चाहिए|
...
(This is to be read in political scenario of India in Sept 2016)
India has three problems
1) Poverty
...
तेल और गैस बचाव पखवाड़े की शुरवात 1991 मे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के मार्गदर्शन मे हुई थी| पहले ये कार्यक्रम एक हफ्ते का होता था, जिसकी अवधि 1997 मे दो हफ्ते कर दी गयी| इस वर्ष 2017 से इसकी अवधी बढ़ा कर 1 महीने कर दी गयी है।
आज के वैश्विक परिवेश मे किसी भी देश कि सामाजिक और आर्थिक तरक्की के लिए ऊर्जा का उत्पादन और उसका सही तरीके से इस्तेमाल बहुत ही आवश्यक है| हमारा देश अपनी ऊर्जा के लिए काफी हद तक जीवाश्म ईंधन (fossil fuel) पर निर्भर रेहता है, जिसमे पैट्रोलियम उत्पादों का एक विशेष योगदान है| भारत मे पेट्रोलियम की खपत बहुत तेजी से बढ़ रही है| पेट्रोलियम की खपत 1950-51 मे 3.5 MMT थी जो 2013-14 मे बढ़कर 158.2 हो गयी और 2021-22 मे इसकी खपत 245 MMT तक पहुँचने का अनुमान है|
...
For those who feel reservation system in India is peculiar to India. Brace yourself. (Caste based reservation is unique to India because of its social diversity) .
Just as animal/plant species adapt to particular environment; countries adapt to their social ethnic structure as per their need.
...
(To be read in conjunction with India's political-religious situation in 2015)
Recently there has been controversy regarding beef-ban. Then you link it with religion or you first link with religion and then put a ban on beef.
...
Took a walk
Down the memory lane
Found a box of treasure
That brought me pleasure
...
मन में उठी एक व्यथा,
क्या थी मुझे नहीं पता|
लगता है डर
न जाने क्यूँ?
...
अंतर्द्वन से उपजी मन मे एक व्यथा| क्या बताएं, किसको बताएं, सोच रही थी चिड़िया| थे उस चिड़िया के दो सिर और दो दिमाग, दोनों की थी सोच अलग|
वन मे विचरते-विचरते उसने देखा की एक शेर एक हिरण का शिकार कर रहा है| हिरण दर्द से कराह रहा है, उसके प्राण देखते ही देखते चले गए| लाज न आई उस शेर को| उसने मार दिया निरपराध जानवर को| संसार की ये कैसी रचना की भगवान ने| शेर की भूख भी मिटानी है और हिरण की भी जान बचनी है, ऐसी युक्ति सोचने मे विवश हो ज्ञी दो मुखी चिड़िया|
...
जाने कहाँ गए वो दिन| वो दिन जहां मेरे बच्चों कि किलकारियां सारा दिन उधम मचाती थी; जहां मेरे पिता, मेरी हर ख्वाइश पूरी किया करते थे; बाज़ार के सारे खिलोने मेरे थे; मेरी माँ के हाथों कि मिठाइयाँ और नमकीन मेरे जीवन में आनंद लाती थीं; जहाँ मैं अपनी प्रियसी कि बाहों में लिपटा रहता था|
ऐसा क्या हो गया आज? दिन बदले और फिर बीते साल; मुझे लगा कि सारी ज़िन्दगी ऐसे ही चलती रहेगी| व्यापार का ऐसा चस्का लगा कि मैं अपने परिवार को धुप में ही छोड़कर चला गया| जाता भी क्यूँ ना| पिताजी का ताना, "घर पर मुफ्त कि रोटी तोड़ने वाला"; वो भी मेरी धर्म-पत्नी के सम्मुख ने मेरे दिन-रात कि नींद उदा दी| घर में किसी चीज़ कि कमी ना थी - कोई आभाव नहीं था; सारे सुख थे| फिर भी पिताजी ने मेरी बेइज्जती करी| ऐसा किया ही क्या है मैंने? या फिर यूँ कहें कि मैंने कुछ नही किया| नहीं-नहीं, कुछ तो करना होगा| ऐसा नही हो सकता| मेरे मन-मस्तिष्क में अंतर-द्वन्द चला जा रहा था| ऐसे कटु वाक्य और कटु-प्रश्न मैंने कभी सुने नहीं थे| क्या करूं मैं? पढ़ा लिखा तो बहुत हूँ लेकिन व्यापार का कोई ज्ञान नहीं है| और अगर मैं चला गया, तो मेरे परिवार का ध्यान कौन रखेगा|
...