जिनके इरादे बुलंद होते है।
जिनके इरादे बुलंद होते है।
खुदा को ऐसे बंदे बहुत पसंद होते हैं।
भले हीं सारे साथ छोड़ दें गर्दिश में,
...
वक़्त लाख चाहे मगर ख्वाहिसो के दम नहीं निकलते है
वैसे कब आ जाए वो घड़ी इसलिए रोज कफन ले के ही निकलते है।
मै देखता हूँ बहुत गौर से रोज ही आइना
...
हम आए थे महफ़िल में आपकी रौनक़ बढ़ाने शान से,
देखकर आपके इतने कदरदान टूट गया, भ्रम अच्छा हुआ.
इसके पहले की कोई मुझको फेंक दे दिल से निकाल,
...
मैं तो बस एक फ़ुल हुँ,
लेकिन तेरी ज़िन्दगी महकाने के लिये काफ़ी हुँ।
मैं तो बस एक तारा हुँ,
...
ना तो जनता को भ्रष्टाचार मार रही है,
ना ही जनता को महँगाई मार रही है,
कैसे बदले इस संसार को जो इतनी बुराइयों से भरी है,
लाख उपायों के बाद नहीं बदलती ये लाचारी मार रही है।।
...
जैसे रेशमी किरणों से नहाती है धरती चाँदनी रात में।
वैसे हीं मेरा मन भींगता है आपकी यादों की बरसात में।
तनहाइ के अंधेरों में भी दिल में तेरी तस्वीर ऐसे चमकती है।
जैसे अमावस्या की रात झिलमिलाती है ताराें की बारात में।
...
हमने अपने पीने का अंदाज बदल डाला है
हमने अपने जीने का अंदाज बदल डाला है
अब तो जो भी मिलता है यहीं बात कहता है
हमने उसके सीने में सूरज का उजाला भर डाला है
...
स्वर्ग और नर्क का राज समझ आता नहीं।
यह पहेली मुझसे सुलझ पाता नहीं।
मैं जब कहता हुँ कि इसी दुनिया में दोनों का वास है।
फिर क्यों कहते हैं पागल मुझे और करते हैं उपहास हैं
...
बुलंद
जिनके इरादे बुलंद होते है।
जिनके इरादे बुलंद होते है।
खुदा को ऐसे बंदे बहुत पसंद होते हैं।
भले हीं सारे साथ छोड़ दें गर्दिश में,
वो हमेशा उसके संग होते हैं।
ज़िन्दगी में सब तरह के वक़्तआते हैं,
कभी -कभी हमारे हिम्मत तोड़ जाते हैं।
जब ज़रूरत होती है सबसे ज़्यादा,
तभी सारे अपने साथ छोड़ जाते हैं।
हम नहीं चाहते हैं जिस राह पर चलना,
तुफान हमको उधर मोड़ जाते हैं।
बादल कुछ ऐसे ढंक लेता है सूरज को,
दिन में भी अंधकार निकल आते हैं ।
आँधियाँ आती है कभी इतने ग़ुस्से में,
पत्ते तो पत्ते पेंड को भी जड़ से उखाड़ जाते हैं ।
लेकिन जिनको हारने की आदत नहीं,
वो कोई न कोई राह खोज लेते हैं ।
जिनके इरादे बुलंद..............., , ,
सबको अवसर कहाँ एक- सा मिलता है,
बंजर धरती पर फ़ुल कहाँ खिलता है।
धरती की प्यास कभी इतनी बढ़ जाती है,
उसकी छाती दर्द से जगह -जगह से दरक जाती है।
लेकिन बादल कब तक उसको तड़पाता है,
एक दिन खुद हीं उसका दामन आंसुओं से छलक जाता है।
वक़त कैसा भी हो बदलता ज़रूर है।
रात कितनी भी लंबी हो सूरज निकलता ज़रूर है।
हर राह मुश्किल से भरी होती है,
लेकिन चलने वालों को मिलती जरूर है।
उनको कौन सही राह से डिगा सकता है।
जिनके क़दमों में अंगद के क़दमों सा बल होते हैं।
जिनके हौसले में....................
आशुतोष कुमार