कल कल कल कब आएगा ये कल,
जिंदगी बीत जाती है। नही आता तो बस ये कल! !
अंधेरी रात के बाद आता है नया सवेरा,
बीत जाते हैं पुराने सारे पल,
नही आता तो बस ये कल! !
धूप और छांव जिंदगी यही खेल है,
और यह समय कभी न रुकने वाली रेल है।
जो दुखों के इन तूफानों को झेल न पाया,
वो यहां फेल है।।
हर दिन सोचता हूं कब मिलेगा मुझे मेरी
महनत का फल,
नहीं आता तो बस ये कल कल कल ! !
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यह एक प्यारी कविता है जिसमें जीवन की अनिश्चतता, सुख-दुःख व अनागत का इंतज़ार दिखाया गया है. बहुत सुंदर: धूप और छांव जिंदगी यही खेल है, और यह समय कभी न रुकने वाली रेल है।
Rajnish sir, Thanks a lot for this comment it actually means a lot and it inspired me.. I am glad that you read my poems.. Tahe dil se dhanyavad :)