मैं ओस हूँ
शीत ऋतु है मेरा जन्मदाता,
सूर्योदय है काल मेरा,
रात्रि समय मैं जन्म लें
जाता हूँ आँगन-आँगन उड़े
घड़ी दो घड़ी जीवन है मेरा
आनन्द में जीता हूँ ।
मैं ओस हूँ ।
जब समय हुआ सूर्योदय का
मैं धबराया और लगा सोचने
आया समय मेरे अंत का
कल आऊँगा फिर जग को देखने
जन्म अनेको बार लेता हूँ ।
मैं ओस हूँ ।
'हे ईश्वर' कब होगी मेरी
मुक्ति इस जगत् से
न लु जन्म बारम्बार,
नहीं है यहाँ कोई सुखी
है यहाँ पर दुखो का भण्डार,
जाती है चमक सत्य की
जैसे मैं चमक कर मरता हूँ ।
मैं ओस हूँ ।
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