निर्मोही पतझड़ Poem by vijay gupta

निर्मोही पतझड़

निर्मोही पतझड़
मौसम अंगड़ाई ले रहा,
आहट गर्मी की हो रही।
सर्दी का आतंक,
अब खत्म सा होने को है।
कीट-पतंगे अब,
मौज मनाने लगे।
बच्चे हल्के-फुल्के कपड़ों में,
धमाल मचाने लगे।
छोटी-छोटी कलियां मुस्कुराने लगी,
अठखेलियां भौरो संग करने लगी।
बगीचे गुलजार होने लगे,
सर्दियों की याद भुलाने लगे।
रंग बिरंगी तितलियां मंडराने लगी,
बच्चे उनके पीछे दौड़ने लगे।
बगीचे में एक तमाशा हो गया,
छोटे बड़े सब भाग-दौड़ में लगे।
बसंत को गये महीना भर हो गया,
पत्ते मुरझा से रहे।
पीले पड़े पत्तों ने,
भारी मन से कलियों से कहा,
हम तो अब सफर करते हैं,
ये निर्मोही पतझड़ आ गया।
कलियों ने कहां पत्तों से
ये कोई नई बात नहीं है,
सदियों से ये सिलसिला,
यूं ही चलता आ रहा है।

Wednesday, March 21, 2018
Topic(s) of this poem: autumn
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vijay gupta

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meerut, india
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