'अंधेरो रास्तो में कहीं खो गया हूँ
जगते जगते, कहीं सो गया हूँ'
'भटका है मन, यूँ क्यों मुझसे
दीये उजालो के, गए क्यों भुज से'
'रौशनी नहीं, बस छाईए काली घटा
रे ऐह सूरए, अपना शौर्य दिखा'
'छुड़ा कैद से, पंछी ख़्यालो के
ढूंढ़ जवाब, कुछ ऐसे सवालो के'
'शायद जवाबो से मिले, हल वो सारे
बहते हो दूर, जो दरिया किनारे'
'कश्ती भी ना पहुंचे जहा
समझ में ऐसा जरिया बना'
'के मिले वो किरण और हो ऐसा सवेरा
की सूरज के छुपने से ना हो अँधेरा'
समर सुधा
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Beautiful poem...thanks for sharing :)