अहाना Poem by Dr. Sandeep Kumar Mondal

अहाना

जब गुम हो जाते हो अलफ़ाज़,
जब थिरकती गुनगुनाती कानो में दस्तक देती,
सांसो की आवाज़,
जब कौन्दति हो सोच, खुद से पूछती,
तेरे भीतर कोई रोग है क्या?
या बेचैनी का पैमाना है?
कैसे कहू की मेरे अंदर भी एक अहाना है,
जो मेरे इश्क़ करने का बहाना है I

कोई सोचता हो तो सोचे,
कोई कहता हो तो कहे,
झूठ ही है अगर इस दिल में किसी का रहना,
आखिर ये भी तो मेरा ही आशियाना है,
किसी ने घर तो बसाया, आखिर कोई तो है,
जिसका यहाँ रोज़ आना जाना है,
कैसे कहू की मेरे अंदर भी एक अहाना है,
जो मेरे इश्क़ करने का बहाना है I

Wednesday, January 18, 2017
Topic(s) of this poem: love
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Dr. Sandeep Kumar Mondal

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dhanbad, jharkhand
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