अब वो भी छुपाने लगे Poem by Sharad Bhatia

अब वो भी छुपाने लगे

Rating: 5.0

अब वो भी छुपाने लगे

अब वो भी छुपाने लगे,
हम जो दो बात कभी इकट्ठे करते थे,
उसे कहने से कतराने लगे,
अब वो भी छुपाने लगे ।।
शायद दिल की बात दिल मे रखने का हुनर जानने लगे,
अब वो भी छुपाने लगे ।।

पहले एक दूसरे के हमदर्द हुआ करते थे,
अब सिर दर्द बन गए,
कभी बात किए बिना नहीं रहते थे,
अब चुपचाप चुप हो गए,
शायद हमारे बीच के शब्द कम पड़ गए।।
जो बिना कुछ कहे, मुँह फेर गए हैं,
अब वो भी छुपाने लगे।।

एक शेर अर्ज़ कहना चाहता हूँ -
कि दाद देते हैं हम तुम्हारे " नजर अंदाज " करने के हुनर को
जिसने भी सिखाया वो "उस्ताद" कमाल का होगा

जिसने जलाया मेरा घर,
वो उस्ताद और भी कमाल का होगा।।

एक एहसास मेरी नन्ही कलम से
(शरद भाटिया)

अब वो भी छुपाने लगे
Saturday, August 29, 2020
Topic(s) of this poem: emotion,feelings,hiding,sad love
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 30 August 2020

bahut badhiyaa kavitaa kaa rup, , mujhe achchhi lagi, , clear 10 वो चेहरा रविवार, ३० अगस्त २०२० धरती एक मानव समंदर है दुरिया ओर मन-मनांतर है इसी में किसी से दिली लगाव हो जाना बड़ी बात है इसी को अंत तक निभाना सौभाग्य और सौगाद है। डॉ जाडिआ हसमुख

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Rajnish Manga 29 August 2020

मानव स्वभाव में उतार चढ़ाव का सुंदर अंकन. रचना के अंत में शे'र भी अच्छा कहा है. धन्यवाद, मित्र शरद जी.

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Varsha M 29 August 2020

Bahut khoob bahut khoob Aab oo bhi chupne lage Baadloon ke aad me Hame lage ke wo poonchenge Kya baat hai iss khamooshi ka Par wo to bas nazarandaaz kar gaye. Kya kahoon aai musafir Soocha tha maine to bahut Par ussne to dekha bhi nahi palat kar Ke haal-e-takdeer ne kiya mera kya haal. Bahut khoob rachna aur sone pe suhaga shayari aandaz. Dhanyawad.

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M Asim Nehal 29 August 2020

दाद देते हैं हम तुम्हारे " नजर अंदाज " करने के हुनर को जिसने भी सिखाया वो " उस्ताद" कमाल का होगा Aur उस्तादों से भी उस्तादी कमाल कर गयी.... A simple addition to your sher.

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M Asim Nehal 29 August 2020

एक बेहतरी कविता जो हकीकत के बेहद करीब है. अर्ज़ किय है: : 10++ वक़्त के साथ सब बदल जाता है खुशियों का लम्हा भी गुज़र जाता है जो चढ़ता है सूरज आस्मां में वो भी तो ढलते ढलते ढल जाता है

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