नहीं है Poem by Suhail Kakorvi

नहीं है

जो खतरे में मेरी रगे जाँ नहीं है
तो इसका है मतलब बहारां नहीं है

ये है रौशनी का अधूरा तसव्वुर
ये सूरज है ऱुखसारे ताबां नहीं है

चटख हो रही हैं अदाएं तुम्हारी
सलामत जहाँ भर का ईमां नहीं है

यहाँ फूल खिलते हैं उसकी नज़र से
ये उसका है घर ये गुलिस्तां नहीं है

इशारे कहीं और से मिल रहे है
मेरे बस में मेरा गरीबां नहीं है

उठा मौजे रानाई हमको डिबो दे
समंदर वो क्या जिसमें तूफाँ नहीं है

तुम उस तक न पहोंचे अलग है ये किस्सा
मगर यार तुमसे गुरेज़ां नहीं है

वही सादगी जानलेवा है ज़्यादा
जो आराइशे रुए जानाँ नहीं है

गुलों का तबस्सुम यही कह रहा है
हसीनों की उल्फत नुमायाँ नहीं है

सुहैल उसके दिल में तो झांको ज़रा सा
वहां हश्र का कौन सामां नहीं है
- - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - सुहैल काकोरवी
रगे जाँ =जीवन धमनी, बहारां=शरद ऋतु, गुलिस्तां=बाग़, ईमां=धार्मिक विश्वास, रानाई=सौंदर्य, गुरेज़ां=भागना, बेपरवाह होना आराइशे रुए जानाँ= प्रेयसी का श्रृंगार, तबस्सुम =मुस्कान, उल्फत= प्रेम, नुमायाँ=स्पष्ट, हश्र=प्रलय, सामां =प्रबंध

नहीं है
Saturday, October 22, 2016
Topic(s) of this poem: love and dreams
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Suhail Kakorvi

Suhail Kakorvi

Lucknow
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