मैं मुझ में खोया रहा Poem by Kezia Kezia

मैं मुझ में खोया रहा

मैं निहारता रहा,
वो मुस्कुराती रही।
मैं सुनता रहा,
वो गुनगुनाती रही।
मैं बैठा रहा,
वो इठलाती रही।
मैं कहता रहा,
वो सुनती रही।
मैं बिगाड़ता रहा,
वो बुनती रही।
मैं बनाता रहा,
वो सजाती रही।
मैं बिखराता रहा,
वो समेटती रही।
मैं धैर्य खोता रहा,
वो हौसला बढ़ाती रही।
मैं मुझ में खोया रहा,
वो मुझ में खुद को ढूँढती रही।
***

Saturday, November 9, 2019
Topic(s) of this poem: philosophical
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 18 August 2020

यह दृश्य पूर्णतः सामान्य व्यक्ति हैं- एक लड़का और एक लड़की. एक की आवाज़ पर दूसरा सहयोग का हाथ बढ़ाता है. दोनों एक दूसरे को पूर्णता प्रदान करते हैं. वैयक्तिक स्तर पर रिश्तों की समरसता के लिए त्याग तथा समर्पण की जरुरत से इनकार नहीं किया जा सकता. बहुत बहुत धन्यवाद श्रीमान जी.

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