एक प्रश्न Poem by Kezia Kezia

एक प्रश्न

Rating: 5.0

एक प्रश्न

फिर उभरा

हर बार की तरह

दिमाग में गरजा

जिंदगी को बेहद तस्सली से बुना

ग़मों के गुलशन से भी खुशी को चुना

आज जिंदगी घिस कर फटने लगी है

मैं रफू कर कर के हारी

फिर भी क्यों

ये चिथड़े हो कर मानी

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Tuesday, June 13, 2017
Topic(s) of this poem: philosophical
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 13 June 2017

आपकी कविता में भावों की तीव्रता पाठक को बहुत प्रभावित करती है. यहाँ बावजूद ईमानदार कोस्जिश के सब कुछ खो देने का ग़म उभर का सामने आता है. ऐसी गहरी अभिव्यक्ति कम ही देखने में आती है. धन्यवाद. कुछ पंक्तियाँ उद्धृत करता हूँ: जिंदगी को बेहद तस्सली से बुना /....फिर भी क्यों / ये चिथड़े हो कर मानी

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M Asim Nehal 13 June 2017

Bahut Khoob....Kya varnan kiya hai aapne zindagi ka...Ati Uttam.10++++

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