बारिशों के सुलझे धागे
बिखरे दिलों को कैसे बांधे
खिंचे चले आते हैं,
कोई किस ओर भी भागे
मन नाचता हैं
इन धागों के संग
आसमान में उड़ती
जैसे कोई पतंग
छूट गई हो जिसकी डोर
मतवाला मन भागे हर ओर
इन धागों से सपने बुने
बूँदों में फिर मोती चुने
बूँदों पर बैठकर झूला झूले
पींग बढ़ाकर आकाश को छू ले
बारिशो के ये सुलझे धागे
मन इनमें उलझना चाहे
धरती और अम्बर को नापें
मजबूती इनकी जन जन जांचे
बारिशो के ये सुलझे धागे
बिखरे दिलों को कैसे बाँधे
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