मेरी माँ Poem by vijay gupta

मेरी माँ

Rating: 5.0

मेरी माँ

कभी तोला, कभी माशा,
कभी शोला, कभी शबनम,
कभी हमदम, कभी हरजाई,
कभी फूलों की सी रंगत,
कभी सावन की फुहारें,
कभी जेठ की गर्मी तुझमें है।
मन साफ है निर्मल है,
गंगाजल की तरह।
गंगा भी तो मजबूर है,
कभी-कभी रौद्र रूप दिखाने को।
आकाश की तरह विशाल,
धरती की सी समाई तुझमें है।
तेरी झील सी आंखें,
कैद समंदर उनमे है।
तू मां है मेरी,
प्रकृति का नायाब तोहफा है।
अश्क ना आए दुख में कभी,
मेरी हल्की सी पीर रुला देती है तुझे।
आंचल साफ है जब तक
मैं हंसता मुस्कुराता हूं।
मेरी जरा सी नादानी,
तेरा आंचल भिगो देती है।
बचपना गोद में दुलराया,
जवानी नजरों से तराशी है,
बुढ़ापा आ गया मुझको,
अब याद तेरी सताती है।

Thursday, October 12, 2017
Topic(s) of this poem: social
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 12 October 2017

Mother is great ever her role is unlimited. She very soft life flower and her bless builds future of child. Even in old age a child remembers his mother. A nice tender poem is shared here is excellent tribute poem..10

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meerut, india
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