राजनीति Poem by vijay gupta

राजनीति

राजनीति

चौपाल बटॅ गई
चौराहे बटॅ गये,
जब से आई राजनीति,
गाँव के गांव बट गये।
मिलते थे खुले दिल से,
खिंचे-खिंचे से रहने लगे,
दिलो में आया फर्क,
सहजता खुद-ब-खुद नदारत हो गई,
जब से आई राजनीति,
गाँव की फिजां ही बदल गई।
धर्म और जातियों ने बांटा,
अब राजनीति बांट रही।
लोगों के दिलों को,
आपस में तोड़ रही।
तन-मन की कहने में,
ना संकोच था कभी,
अब कुछ भी कहने से परहेज,
राजनैतिक नजरिए पर नजर दौड़ रही।
जब से आई राजनीति,
गाँव की फिजां ही बदल गई।
स्वार्थों की लड़ाई, वर्चस्व की लड़ाई,
अब आम हो गई।
सामूहिक हितों की बात,
अब गौड़ हो गई।
था कभी जमाना,
निर्द्वंद घूमते थे,
धुंधलका छाते ही,
डर सताने लगता है।
जब से आई राजनीति,
गाँव की फिजां ही बदल गई।

Saturday, February 24, 2018
Topic(s) of this poem: politics
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vijay gupta

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meerut, india
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