दिल को छू कर ये गुजरा है कौन
तुम नहीं पुछोगे तो हाल पुछेगा कौन
चैन सूकून लूट गया एक मुलाकात में
कहाँ से आया तुफान ये जानेगा कौन
बंजर धरती पर प्यार का बीज बो गया
सोच रहा हूँ इस फसल को काटेगा कौन
बात-बात में आ जाता है नाम तुम्हारा
ये दुनियाँ है इस दुनियाँ को संभालेगा कौन
हो गया हूँ घर से बेघर पर सुकून मिला है
तेरी यादों को इस दिल से निकालेगा कौन
तोड़ भी दूँगा सारी सरहदें एक दिन 'राज'
फिर ना कहना मुझे ये "राज "कौन
I got to see the transition of this when you put it on FB. Thank you. This poem is sublimine❣️