मजदूर Poem by Raj Swami

मजदूर

Rating: 5.0

लड़ता है मजदूर अपने हालात से
दो जून की रोटी के लिए
रोता है छुप-छुप कर
सुला देता है अपने बच्चों को
ये कहकर सो जाओ जल्दी से
सपने में आता है मसीहा
घी से चुपड़ी हुई रोटी लेकर

राज स्वामी

#मजदूरदिवस
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मजदूर
Tuesday, May 1, 2018
Topic(s) of this poem: labor day
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