अपनी तबाहियों के मंजर चुप-चाप देखती हूँ।
हाथ से फिसलते रिश्तों को जब समेटनेको बढ़ती हूँ।
तोहमत्तें धरता है मेरा वजूद मुझ पर,
जब छटपटाते अपने दिल को सहारा देती हूँ।
लौट कर आ जाती है वो याद।
लौट कर अपने साथ ले आती है हर वो फरियाद।
जिसका मेरी खुशी से वास्ता रहा हो।
हिस्सा भले मेरा नहीं, तुम्हारा रहा हो।
फिर वो दिल की छटपटाहट अौर हाथों का कंपकपाना।
मेरी नज़रों का फिर वो मूंद-बिघ कर सो जाना।
चुभता है एक आँसू, जो हल्के से फिसलता है।
जानता है वे मेरी आँख को खटकता है।
जा कर रूखसार पर मिट जाता है।
वाकिफ़ है आहट से सपना टूट जाता है। बेपरवाह कूंठित स्वप्न मुझे लोरी सुनाते हैं।
कहर से बचा कर मुझ पर कहर ढ़ाते हैं।
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