निवेदन Poem by vijay gupta

निवेदन

निवेदन

ए गर्म हवाओं शांत हो जाओ,
मेरा नन्हा महबूब स्कूल जा रहा है।
चिलचिलाती धूप के थपेड़ों शांत हो जाओ,
मेरे नन्हा महबूब आंगन में घूम रहा है।
डर है उसके पांव में,
कहीं छाले ना पड़ जाए।
नन्ही-नन्ही कलियां सहमी सहमी सी है,
कहीं वो झुलस ना जाए।
गर्म हवाओं शांत हो जाओ,
मेरे नन्हा महबूब स्कूल जा रहा है।
माना कि साल में कुछ समय
तुम्हारा भी आता है।
अंधड़, तेज हवा, लू के थपेड़े,
कहर अपना बरसाते हैं।
ये तो नियम प्रकृति का है,
तुम भी क्या कर सकते हो।
ये गुलाब, गेंदा, गुड़हल भी परेशान है,
कहते हैं तुम अब शांत हो जाओ।
नन्हे-मुन्नों को घूमने दो,
निर्द्वंद उनको खेलने दो,
कलियों को मुस्कुराने दो,
उन्हें भी मस्ती के आलम में डूबने दो।
उम्मीद है तुम अब शांत हो जाओगे,
आगमन वर्षा का होने दो,
सावन को धरती पर बरसने दो,
कायनात मुस्कुराएगी।
सभी गीत खुशी के गाएंगे,
उम्मीद है निवेदन स्वीकार होगा।

Thursday, May 31, 2018
Topic(s) of this poem: summer time
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vijay gupta

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meerut, india
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