सावन आया रे Poem by vijay gupta

सावन आया रे

Rating: 5.0

सावन आया रे
आसमान से बदरा बरसे,
धरती पर बरसे सावन।
मंद-मंद बहे समीर,
कल-कल बहता नदियों में नीर।
लहलहा उठी बागियां,
अट्टहास कर रही कलियां।
नाव बना कर कागज की,
किलोल कर रही मानिया।
ये देखो छप-छप करता,
छोटे-छोटे बच्चों का दल।
आसमान से बदरा बरसे,
धरती पर बरसे सावन।
टर्र टर्र की आवाज सुनी,
देखा भौंरों का झुंड।
इंद्रधनुष बिखेर रहा,
घटा अपनी आकाश पर।
तेज हो गए पानी के धारे,
कांपी सड़क, कांपे पुल, कांपे सारे नर-नारी।
तोबा करते ऐसे सावन से,
या से तो गर्मी भली।
बच्चों के लिए सावन सब कुछ,
खेले-कूदे मौज मनावे।
सावन आया-सावन आया,
कविताओं ने अंबर लगाया।
खुश था किसान जब आधा सावन बरसा था,
अब तो वह तौबा करता।
आसमान से बदरा बरसे,
धरती पर बरसे सावन।

Tuesday, July 31, 2018
Topic(s) of this poem: rainbow
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 31 July 2018

Rainy season nicely portrayed with all its shades- joys as well as devastations. Thank you, Vijay.

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