ईद का चाँद और दिवाली Poem by Sharad Bhatia

ईद का चाँद और दिवाली

Rating: 5.0

ईद का चाँद और दिवाली

वो कहते हैं, कि अब तो चाँद का बँटवारा हो गया,
ईद पर तुम्हारा और करवाचौथ पर हमारा हो गया ।।

कभी एक ही थाली मे खाया करते थे,
अब थाली भी अलग - अलग कर जाते हैं,
क्यूंकि खुद को हिन्दू और तुम्हें मुसलमान बता जाते हैं।।

कभी बचपन मे गुल्ली-डंडा और कँचे साथ - साथ खेला करते थे,
अब हॉकी और डंडे की बात कर जाते हैं,
क्यूंकि खुद को हिन्दू और तुम्हें मुसलमान बता जाते हैं ll

बात-बात पर लड़ना अपने बच्चों को सिखा जाते हैं,
और उनके मन मे भेदभाव की भावना जगा जाते हैं l
क्यूंकि खुद को हिन्दू और तुम्हें मुसलमान बता जाते हैं ll

आओ इस "ईद" पर कुछ नया करके दिखाते हैं,
एक नये सुन्दर "सौराष्ट्र" का निर्माण करने का प्रयास कर जाते हैं ll

आओ "ह" हिन्दू, "म" मुसलमान का चोला उतार कर "हम" बन जाते हैं,
आओ अब "हम" मिलकर फिर से चाँद को एक कर जाते हैं ll

अब "हम" आपस मे,
अपने बच्चों को एक साथ गले मिलना सिखाते हैं ll
हॉकी - डंडे की बात तो दूर,
सिर्फ साथ - साथ मे गुल्ली - डंडा और कँचे खेलना भी सिखाते हैं ll

आओ अब "हम " एक ही थाली मे खाना खाये,
आओ "हम " इस "ईद" पर चाँद के दीदार के साथ दिवाली भी मनाये ll

"ईद मुबारक" बोलने के साथ "दिये" भी जलाये,
गले मिलने के साथ "थाली" भी बजाये ll

आओ "हम " मिलकर "ईद" मनाये,
हर किसी को गले लगाकर" ईद मुबारक" बोल जाये,
आओ इस खुशी को "हम" एक साथ मनाये...! !
आओ "हम"एक हो जाये....! !

एक छोटा सा एहसास मेरी प्यारी सी कलम से
(शरद भाटिया)

Saturday, August 1, 2020
Topic(s) of this poem: celebrations,feeling
COMMENTS OF THE POEM
Varsha M 01 August 2020

Beautiful Eid Mubarak. Beautiful nostalgic journey. Admirations for reminding this beautiful relationship.

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Rajnish Manga 01 August 2020

आओ " हम " मिलकर " ईद" मनाये, हर किसी को गले लगाकर" ईद मुबारक" बोल जाये, आओ इस खुशी को " हम" एक साथ मनाये...! ! आओ " हम" एक हो जाये....! ! .... //.... Wow! ! This is such a beautiful poem. This spirit of unity between different communities is the need of the hour. Let us celebrate our diversity of cultures for all times to come and be proud of our great country i.e.India.

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M Asim Nehal 01 August 2020

वाह क्या बात है, ये जो दिलों में नफरत के बीज बोन का काम करते हैं, ये किसी मज़हब को नहीं बल्क़ि अपने अहंकार की सुनते हैं, इनको सिर्फ अपना स्वार्थ पूरा करना होता है, आपकी कविता इनके मुँह पर एक तमाचा है, इनको आपने सही आईना दिखया है, बधाईयां

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