"हम सफर" Poem by vijay gupta

"हम सफर"

"हम सफर"

धुंधलका शाम का छाने लगा,
हमसफरपगडंडी बदलने लगा।
अकेलेपन का अहसास,
जेहन पर तारी होने लगा।
चांद आकाश मे दिखने लगा,
राह मेरी आसान करने लगा।
तारे मुस्कुराने लगे,
मन मेरा बहलाने लगे।
पहर बितने लगा,
धुंधलका छटने लगा।
पौं फटने लगी,
पक्षी कलरव करने लगे।
चांद छिपने को चला,
तारे मुंह छुपाने लगे।
मन बेचैन होने लगा,
आज की किरण पूरब से दिखी।
सूरज चमकने लगा,
अलौकिक घरा होने लगी।
समय बीतने लगा,
गंतव्य की ओर कदम बढ़ते रहे।
शाम का धुंधलका फिर गहराने लगा,
तारे फिर टिमटिमाने लगे।
चांद फिर मुस्कुराने लगा,
राह मुझको दिखाने लगा।
क्रम धरा पर दोहराया जाने लगा,
पहर बीतने लगे।
समय का चक्र घूमता रहा,
हम सफर आते रहे, जाते रहे।

Friday, August 17, 2018
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