गमों का डेरा Poem by vijay gupta

गमों का डेरा

"गमों का डेरा"

शाम का धुंधलका,
उबड़-खाबड़ सड़क,
अवसाद की काली छाया,
मलिन मुखड़ा, निस्तेज आँखे,
तेज रफ्तार, गोद में नवजात,
पानी की बौछारें,
पैरों में टूटी चप्पलें,
मामूली सा लिबास,
देख कर आलम ऐसा,
एक बारगी दिल धड़क उठा,
कौन चाहेगा इस तरह
नवजात को भिगोना?
लगता है कोई मजबूरी है,
आशियाने से दूरी है।
गंतव्य तक पहुंचने की ललक,
पैरों में चपलता,
मन में उथल-पुथल,
आँखों में आंसू,
मन में सैलाब,
उमड़ने को तैयार,
बेचैन मन, तन में अगन,
अप्रिय धरना का अंदेशा,
कुछ तो दर्शाता है,
दुनिया में गमों का सैलाब दिखाता है।
किसी शायर ने ठीक ही कहा है,
यह दुनिया "गमों का डेरा है"।

Wednesday, October 3, 2018
Topic(s) of this poem: sadness
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meerut, india
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