"ख्वाहिश"
ये बिंदास जिंदगी,
बेफिक्री का आलम,
किसी से ना कोई शिकवा, ना गिला,
जो भी मिला सहेज लिया।
ना धूप की चिंता,
ना बरसात का डर,
उबड़-खाबड़ रास्तों पर
मस्ती भरा सफर।
धरती है बिछोना,
आकाश है छत,
कंधे पर थैला,
दिल में चाहत जमाने को जानने की,
कोई सूफी कहता
कोई कहता फकीर।
मैं तो कहता हूं,
यह तो एक परदेसी है ।
आया है ना जाने कहां से,
चला जाएगा ना जाने कहां पर,
कोई एक मंजिल नहीं इसकी,
पूत जहां है संसार इसका,
जब तक रहेगा बिंदास रहेगा
खाएगा, पिएगा और ऐश करेगा।
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