"वारांणसी है नाम इसका"
ये घाटों की नगरी
तिलिस्मों से भरी,
वारांणसी है नाम इसका
सांत्वना देना काम इसका,
मंदिरों की श्रंखला
भक्तों का जमावड़ा,
सैलानियों का मेला,
इच्छाओं का अंबार,
ना जाने पूरी भी होती है या नहीं,
परंतु विश्वास अपरंपार।
शिवालयों की नगरी,
साधुओं की धमा-चौकड़ी।
चिलम के धुँऐ का अंबार,
मस्ती में गाते कलाकार।
बज रहे हैं चिमटे,
डमरुओं की ढमा-ढम,
राख में लिपटे जटाधारी,
गेरुऎं वस्त्रों से सजी साध्वीयाँ,
आकर्षण का केंद्र हैं
और वाराणसी की शान भी
शहर नायाब है,
नवीनता एवं प्राचीनता का मेल है।
आधुनिकता पांव पसार रही है,
आबादी के बढ़ने का बोझ दिखाई देता है
फिर भी करवट लेता शहर,
आधुनिकता की और अग्रसर,
विकास की चाह लिए,
सतत बढ़ता दिखाई देता है।
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