रुखसती
हुई थी रुखसती
तो आंसू छलके थे,
अंजाना भय, अनजाने लोग सामने थे
न जाने क्या होगा, कैसे होगा?
ये कुछ यक्ष प्रश्न सामने खड़े थे?
सफर शुरू भी हो गया,
कुछ भी अनजाना ना हुआ,
रुखसती सामान्य घटना बन कर रह गयी,
अनजाने लोग अनजाने से नहीं,
अपने से लगने लगे।
और तो और अपनों से भी
खास हो गये।
अनजानी डगर अब
जानी पहचानी सी हो गई
डगर आगे बड़ी
दुनिया हसीन लगने लगी
अब तो रुखसती
प्यारी लगने लगी।
रिश्तो के मायने बदलने लगे,
परिवार बढ़ने लगा,
रिश्ते बहु आयामी हो गए,
कुछ तो खास कुछ बेमानी से हो गए।
कुछ और वक्त बीतने दो,
जिंदगी के मायने भी बदल जाएंगे।
छलके थे आंसू कभी
अब फूल खुशी के महकेगें।
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